• +91 99920-48455
  • a2zsolutionco@gmail.com
mere ngpati mere vishal hindi poem

mere ngpati mere vishal hindi poem

  • By Admin
  • 3
  • Comments (04)

हिमालय
मेरे नगपति ! मेरे विशाल !
साकार, दिव्य, गौरव विराट,
पौरुष के पूंजीभूत ज्वाल !
मेरी जननी के हिम-किरीट !
मेरे भारत के दिव्य भाल !
मेरे नगपति ! मेरे विशाल !
युग-युग अजेय, निर्बंध, मुक्त,
युग-युग शुचि, गर्वोन्नत, महान,
निस्सीम व्योम में तान रहा
युग से किस महिमा का वितान ?
कैसी अखंड यह चिर समाधि ?
यतिवर ! कैसा यह अमिट ध्यान ?
तू महाशून्य में खोज रहा
किस जटिल समस्या का निदान ?
उलझन का कैसा विषम जाल ?
मेरे नगपति ! मेरे विशाल !
ओ, मौन तपस्या-लीन यती !
पल भर को तो कर दृगुन्मेश !
रे ज्वालाओं से दग्ध, विकल
है तड़प रहा पद पर स्वदेश.
सुखसिंधु, पंचनद, ब्रह्मपुत्र,
गंगा, यमुना की अमिय धार
जिस पुण्यभूमि की ओर बही
तेरी विगलित करुणा उदार,
जिस के द्वारों पर खड़ा क्रांत
सीमापति ! तू ने की पुकार,
पद-दलित इसे करना पीछे
पहले ले मेरा सिर उतार’
उस पुण्यभूमि पर आज तपी
रे, आन पड़ा संकट कराल
व्याकुल तेरे सुत तड़प रहे
डंस रहे चतुर्दिक विविध व्याल
मेरे नगपति ! मेरे विशाल !
कितनी मणियाँ लुट गईं ? मिटा
कितना मेरा वैभव अशेष !
तू ध्यानमग्न ही रहा, इधर
वीरान हुआ प्यारा स्वदेश !
किन द्रौपदियों के बाल खुले ?
किन-किन कलियों का अंत हुआ ?
कह ह्रदय खोल चित्तौर ! यहाँ
कितने दिन ज्वाल वसंत हुआ ?
पूछे सिकता-कण से हिमपति,
तेरा वह राजस्थान कहाँ ?
वन-वन स्वतंत्रता-दीप लिए
फिरने वाला बलवान कहाँ ?
तू पूछ अवध से राम कहाँ ?
वृंदा ! बोलो घनश्याम कहाँ ?
ओ मगध ! कहाँ मेरे अशोक ?
वह चन्द्रगुप्त बलधाम कहाँ ?
पैरों पर ही है पड़ी हुई
मिथिला भिखारिनी सुकुमारी
तू पूछ कहाँ इस ने खोयीं
अपनी अनंत निधियां सारी ?
री कपिलवस्तु ! कह, बुद्धदेव
के वे मंगल उपदेश कहाँ ?
तिब्बत, ईरान, जापान, चीन
तक गए हुए सन्देश कहाँ ?
वैशाली के भग्नावशेष से
पूछ लिच्छवी-शान कहाँ ?
ओ री उदास गण्डकी ! बता
विद्यापति कवि के गान कहाँ ?
तू तरुण देश से पूछ अरे,
गूंजा यह कैसा ध्वंस-राग ?
अम्बुधि-अंतस्तल-बीच छिपी
यह सुलग रही है कौन आग ?
प्राची के प्रांगण बीच देख,
जल रहा स्वर्ण-युग-अग्नि-ज्वाल
तू सिंहनाद कर जाग तपी !
मेरे नगपति ! मेरे विशाल !
रे रोक युधिष्ठिर को न यहाँ,
जाने दे उन को स्वर्ग धीर,
पर फिरा हमें गाण्डीव-गदा
लौटा दे अर्जुन-भीम वीर !
कह दे शंकर से आज करें
वे प्रलय-नृत्य फिर एक बार
सारे भारत में गूँज उठे
‘हर-हर-बम’ का फिर महोच्चार
ले अंगड़ाई, उठ, हिले धरा,
कर निज विराट स्वर में निनाद,
तू शैलराट ! हुंकार भरे
फट जाए कुहा भागे प्रमाद !
तू मौन त्याग, कर सिंहनाद,
रे तपी ! आज तप का न काल
नव-युग-शंखध्वनि जगा रही
तू जाग, जाग, मेरे विशाल !!

mere ngpati mere vishal hindi poem
  • Share This:

Related Posts