क्षितिज से उठ कर
विषैले बादलों में सनसनाता आता है तूफ़ान
झुलसती कोटरों में चिड़ियाँ टहनियाँ पेड़ों की!
झुका लूँगा शीश तब
उड़ाए झुलसाएगा जब तूफ़ान
यह रुखे सूखे बालों को।
शीश पर सह लूँगा
वेग सब प्रकृति के विकृत तूफ़ान का।
कड़कती उल्का आकाश में
विचलित करती है मानव में अंतर्हित ज्योति को।
बढूँगा आगे और
शांत होगा, जब विष वातावरण
अथवा यों शीश झुका
खड़ा हुआ अचल, एकांत स्थल पर,
देखूँगा भस्मसात होती है कैसे वह अंतर्ज्योति,
पाता है जय कैसे,
मानव पर कैसे यह विकृत प्रकृति का तूफ़ान।
prkriti ka tufan hindi poem