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main jga rhuga raat din hindi poem

main jga rhuga raat din hindi poem

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मैं जगा रहूँगा रात-दिन,
चाहे धूप हो या बरसात हो,
चाहे तूफान आये या पूस की ठंढी रात हो,
मैं खड़ा रहूँगा सरहद पर सीना ताने,
चाहे गोलियों की बौछार हो,
चाहे न खाने को कुछ भी आहार हो,
अपने “वतन” की खातिर मैं,
हर दर्द हँस के सह लूँगा,
निकले जो खून बदन से मेरे,
मैं खुश हो लूँगा,
कभी आँखों में रेत भी चल जाए तो,
वादा है, मेरी पलकें नहीं झपकेगी,
लहू भी जम जाए अगर जो सीने में,
मेरे हाथ बंदूक नीचे नहीं रखेगी,
दुश्मन के घर मेरे “वतन” के चट्टानों का एक टुकड़ा भी न जा पायेगा,
जमींदोज कर दूँगा मैं काफ़िर तुमको,
जो मेरी धरती की तरफ आँख उठाएगा,
कितना भी दुर्गम रास्ता हो,
किंचित भी नहीं डरूँगा मैं,
चप्पे-चप्पे पर रहेगी नजर मेरी,
देश के गद्दारों पर अब रहम नहीं करूँगा मैं।

main jga rhuga raat din hindi poem
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