मैं सैलानी- तुम सैलानी
गति दोनों की ही मनमानी।
पलती है भीतर दोनों के –
एक कुँआरी पीर अजानी।
दोनों में हैं घुटन भरी –
दोनों में पानी है
बादल! मेरी और तुम्हारी
एक कहानी है।
अनगिन रूप-धरे जीने को
लिए-लिए छलनी सीने को
कहाँ-कहाँ भटके हैं हम-तुम
लेकर अपना यौवन गुमसुम।
फिर गाँव, बस्ती में बन में
कुछ न कहीं पाया जीवन में
फिर भी हँसते रहे सदा-
कैसी नादानी है।
हमने जितने स्वप्न सँवारे
मौसम पर बंधक हैं सारे
कितने ही दिन हम ऋतुओं के
आगे रोए – हाथ पसारे।
कहकर सबसे दुआ बंदगी
धुआँ-धुआँ हो गई ज़िंदगी
हम पर बची नहीं
कोई भी नेह निशानी है।
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