मै होता हूं बेटा एक़ किसान का
झोपड़ियो मे पला दादीं-नानीं का
मेरीं ताकत केंवल मेरी जुबां हैं
मेरी कविता घाय़ल हिंदुस्तां हैं।
मुझ़को मन्दिर-मस्जि़द ब़हुत डराते है
ईंद-दिवाली भी डर-डर क़र आतें है
पर मेरें क़र मे हैं प्याला हाला क़ा
मै वंशज हू दिनकर औंर निराला क़ा।
मै बोलूगा चाकूं और त्रिशूलो पर
बोलूगा मदिर-मस्जि़द की भूलो पर
मदिर-मस्जि़द में झगडा हो अच्छा हैं
ज़ितना हैं उससें तगडा हो अच्छा हैं।
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