• +91 99920-48455
  • a2zsolutionco@gmail.com
mai dharti maa bol rhi hu hindi poem

mai dharti maa bol rhi hu hindi poem

  • By Admin
  • 3
  • Comments (04)

मैं धरती मॉ बोल रही हूं
अनगिन घावों की पीडा में
मन के आंसू घोल रही हूं
मैं धरती मॉ बोल रही हूं।

हरियाली की चादर जर्जर,

तपती गर्म हवाओं का डर
पथरीले पथ पर डगमग पग,
बिना त्राण के डोल रही हूं
मैं धरती मॉ बोल रही हूं।

तन का लहू पिलाकर पाला
सुख स्वप्नों में देखा भाला
सुखद छांव दी तरु-विटपों की
सुरभित कर जीवन का प्याला
पर अपने जाये बेटों ने
श्वेताभा से तन रंग डाला
रंगहीन आंचल संभालती
यात्रा पथ पर घूम रही हूं
मैं धरती मॉ बोल रही हूं।

mai dharti maa bol rhi hu hindi poem
  • Share This:

Related Posts