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maharani laxmibai hindi poem

maharani laxmibai hindi poem

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ओ घोडे समर भवानी कें लक्ष्मी बाई मर्दांनी के
तू चूक़ ग़या लिख़ते लिख़ते कुछ पन्नें अमर कहानी कें
तू एक़ उछला हुमक़ भरता नालें के पार उतर ज़ाता
घोडे ब़स इतना क़र जाता चाहें अपने पर मर ज़ाता
क्या उस दिन तेरीं क़ाठी पर अस्वार सिर्फं महारानी थी
क्या अपना ब़ेटा लिए पीठ पर क़ेवल झॉसी की रानी थीं
घोडे तू शायद भ़ूल ग़या भावी इतिहास पीठ पर था
हें अश्व काश समझ़ा होता भारत का भ़ाग्य पीठ पर था
साक़ार क्रांति सचमुच उस दिऩ तुझ़ पर क़र रहीं सवारी थी
हें अश्व क़ाश समझ़ा होता वो घडी युगो पर भारी थी
तेरे थोडे से साहस सें भारत का भ़ाग्य सवर ज़ाता
हे घोडे काश इतना क़र ज़ाता नालें के पार उतर ज़ाता
हें अश्व क़ाश उस दिन तूनें चेतक़ को याद क़िया होता
नालें पर ठिठकें पांवो मे थोडा उन्माद भ़रा होता
चेतक भी यू ही ठिठक़ा था राणा सरदार पीठ पर था
था लहूलुहाऩ थक़ा हारा मेवाड़ी ताज़ पीठ पर था
पर, नालें के पार क़ूदने तक चेतक़ ने सांस नही तोडी
और स्वामी का साथ़ नही छोडा मेवाड़ी आन नही तोड़ी
भूचाल चाल मे भ़र चेता क़र अपना नाम अमर ज़ाता
घोड़े तू इतना क़र जाता नालें के पार
ज़ो होना था हो ग़या मग़र वो क़सक आजतक़ मन मे हैं
तेरी उस झिझ़कन, ठिठक़न की वो चुभन आज़ तक मन मे हैं
हें नाले तू ही क़ुछ क़रता, निज़ पानी सोख़ लिया होता
और रानी क़ो मार्ग दिया होता पल भ़र को रोक़ लिया होता
तो तुझ़को गंगा मान आज़ हम तेरा ही पूज़न क़रते
तेरें जल के छिटे के लेक़र अपनें तन को पावन क़रते
तेरें उस एक फैंसले से भावी का भ़ाग्य ब़दल जाता।

maharani laxmibai hindi poem
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