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maa ki trh hindi poem

maa ki trh hindi poem

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माँ की तरह हम पर प्यार लुटाती है प्रकृति,
बिना मांगे हमें कितना कुछ देती जाती है प्रकृति…
दिन में सूरज की रोशनी देती है प्रकृति,
रात में शीतल चांदनी लती है प्रकृति…
भूमिगत जल से हमारी प्यास बुझाती है प्रकृति,
और बारिश में रिमझिम जल बरसाती है प्रकृति…
दिन-रात प्राणदायिनी हवा चलाती है प्रकृति,
मुफ्त में हमें ढ़ेरों साधन उपलब्ध करती है प्रकृति…
कहीं रेगिस्तान तो कहीं बर्फ बिछा रखे हैं इसने,
कहीं पर्वत खड़े किए तो कहीं नदी बहा रखे हैं इसने…
कहीं गहरे खाई खोदे तो कहीं बंजर जमीन बना रखे हैं इसने,
कहीं फूलों की वादियाँ बसाई त्यों कहीं हरियाली की चादर बिछाई है इसने…
मानव इसका उपयोग करे इससे इसे कोई ऐतराज नहीं,
लेकिन मानव इसकी सीमाओं को तोड़े यह इसको मंजूर नहीं…
जब-जब मानव उदंडता करता है, तब-तब चेतावनी देती है यह,
जब-जब इसकी चेतावनी नजरअंदाज की जाती है, तब-तब सजा देती है यह…
विकास की दौड़ में प्रकृति को नजरअंदाज करना बुद्धिमानी नहीं है,
क्योंकि सवाल है हमारे भविष्य का, यह कोई खेल-कहानी नहीं है…
मानव प्रकृति के अनुसार चले यही मानव के हित में है,
प्रकृति का सम्मान करें सब, यही हमारे हित में है।

maa ki trh hindi poem
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