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maa kab se khdi hindi poem

maa kab se khdi hindi poem

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माँ कब से खड़ी पुकार रही
पुत्रो निज कर में शस्त्र गहो
सेनापति की आवाज़ हुई
तैयार रहो, तैयार रहो
आओ तुम भी दो आज विदा अब क्या अड़चन क्या देरी
लो आज बज उठी रणभेरी।

पैंतीस कोटि लडके बच्चे
जिसके बल पर ललकार रहे
वह पराधीन बिन निज गृह में
परदेशी की दुत्कार सहे
कह दो अब हमको सहन नहीं मेरी माँ कहलाये चेरी।
लो आज बज उठी रणभेरी।

जो दूध-दूध कह तड़प गये
दाने दाने को तरस मरे
लाठियाँ-गोलियाँ जो खाईं
वे घाव अभी तक बने हरे
उन सबका बदला लेने को अब बाहें फड़क रही मेरी
लो आज बज उठी रणभेरी।

अब बढ़े चलो, अब बढ़े चलो
निर्भय हो जग के गान करो
सदियों में अवसर आया है
बलिदानी, अब बलिदान करो
फिर माँ का दूध उमड़ आया बहनें देती मंगल-फेरी।
लो आज बज उठी रणभेरी।

जलने दो जौहर की ज्वाला
अब पहनो केसरिया बाना
आपस का कलह-डाह छोड़ो
तुमको शहीद बनने जाना
जो बिना विजय वापस आये माँ आज शपथ उसको तेरी।
लो आज बज उठी रणभेरी।

maa kab se khdi hindi poem
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