भ्रष्टाचार लूट की कमाई में बहार ही बहार है हर्रे लगे फिटकरी बाबू साहब का राज है गौशाला बना दिया चौपाल खरीद लिया गांव के गांव चरवाहों से चारा सब हड़प लिया जाति धर्म संप्रदाय के नाम पर कब तक वोट मांगोगे कब तक करोगे गुमराह जनता को कब तक नासमझ उन्हें समझोगे माना पैसा बड़ा साधन है पर समय इससे ज्यादा बलवान है हम क्यों करें इस पर विचार करें नित नया भ्रष्टाचार धन है तो जन है और जन है तो व्यापार पैसे बटोरकर जाओगे कहां यार आएगी जब बारी तो होगी विनाशकारी हंसेगी दुनिया सारी रोने की होगी बारी छोड़ो इस फिलॉसफी को करो अपना काम भ्रष्टाचार है धर्म अपना भ्रष्टाचारी नाम जिस थाली में खाएंगे छेद उसी में बनाएंगे जनता का पैसा लूट लूट कर उनको थाल चटाएगें समय परिवर्तनशीला है उसकी अजब लीला है कभी नाव पर गाड़ी तो कभी गाड़ी पर नाव है कौन जाने अबकी किसकी बारी है देखना अब यह है कि नाव पर किसकी सवारी है।।
luut ki kmai me hindi poem