लाली है, हरियाली है,
रूप बहारो वाली यह प्रकृति,
मुझको जग से प्यारी है।
हरे-भरे वन उपवन,
बहती झील, नदिया,
मन को करती है मन मोहित।
प्रकृति फल, फूल, जल, हवा,
सब कुछ न्योछावर करती,
ऐसे जैसे मां हो हमारी।
हर पल रंग बदल कर मन बहलाती,
ठंडी पवन चला कर हमे सुलाती,
बेचैन होती है तो उग्र हो जाती।
कहीं सूखा ले आती, तो कहीं बाढ़,
कभी सुनामी, तो कभी भूकंप ले आती,
इस तरह अपनी नाराजगी जताती।
सहेज लो इस प्रकृति को कहीं गुम ना हो जाए,
हरी-भरी छटा, ठंडी हवा और अमृत सा जल,
कर लो अब थोड़ा सा मन प्रकृति को बचाने का।
lali hai haryali hai hindi poem