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lagan hindi poem

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जरा सी मुहब्बत भी छूती है,
मन को तभी राम संग सीता जाती हैं।

वन को छाया अगर डालियां थोड़ी देंगी,
कुछ तो आराम आएगा तन को।

शीतलता चंदा की सुख दे रही है,
उसने मिटाया है दिन की अगन को।

अगर तुमने अपना किसी को कहा है,
मर के निभाना अपने वचन को वो हंसता है।

अगर उसी उलफत पे मधुकर 
उसे कह दो हल्का ना समझे लगन को।

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