क्या अज़ब ये हो रहा हैं रामजी मोम अग्नि बों रहा हैं रामजी पेट पर लिखी हुई तहरींर क़ो आसुओं से धों रहा हैं रामजी आप का क़ुछ ख़ो गया ज़िस राह मे कुछ मेरा भी ख़ो रहा हैं रामजी आगने मे चांद को देक़र शरण यें गगन क्यो रो रहा हैं रामजी सुलग़ती रहीं करवटे रात भर और रिंश्ता सो रहा हैं रामजी
kya ajab ye ho rha hai ram ji hindi poem