कुदरत ने एक रोज़ ऐसी सर्द मन्द समीर बहायी
जो अपने संग अमृत रूपी बरखा लायी
अमृत रूपी बरखा आता देख
कृषक के मन में उमंग सी छायी
जैसे ही मेघा से अमृत रूपी कण व
के कण-कण मेस समायी
खेत खलियान सब सूख रहे थे जिन्हें देख,
कृषक सब टूट रहे थे
वन उपवप सब रुख रहे थे पशु पक्षी तो सब जूझ रहे थे
पर तेरे आवत की आहट से ऐसी खुशहाली आयी मानव
चंद्रकला की काली घटा हो छायी
वन उपवन यका यक सब झूम रहे
पशु-पक्षी सब कूद रहे हैं कृषक ने ऐसी राहत पायी मानव
बाल मधुसूदन को देख जसमति मुस्कायी
शीर्षक प्रकृति से ही जीवन है
kudrt ne ek roj aisi hindi poem