• +91 99920-48455
  • a2zsolutionco@gmail.com
kuch gam km hote hindi poem

kuch gam km hote hindi poem

  • By Admin
  • 3
  • Comments (04)

मैं चाहता तो तुम्हे रोक भी लेता, पर तुम तो बस एक खयाल थी,
तुम्हे ढूंढ लेता मैं शायद खुदमे,पर तुम तो खुद पर सवाल थी।
किस तरह देखता चेहरा फिर से तुम्हारा
किस तरह पाता अब सहारा तुम्हारा,
किस मोड़ पर तुम्हारी राह देखता,
किस तरह से तुम्हारी आह देखता।
सोचता तुम्हें तो सोचता कैसे,
रोकता तुम्हे तो रोकता कैसे?
मिल रहा था तुम्हारी परछाई से काफी था,
मिल रहा था हमारी तन्हाई से काफी था,
अब किस रास्ते मे ढूँढू तुमको बताओ ना,
याद आती है तुम्हारी जान, वापस आजाओ ना।
एक बार बस एक बार!
मुझे मुझसे मिलवा दो,
तुम्हारे बिना आती ही नही,
मुझे मेरी नींद लौटा दो,
आओ न मुझे याद आती है तुम्हारी,
खुशबू तुम्हारे बाद भी आती है तुम्हारी।
शायद! शायद! कुछ किस्सा तुम्हारा मुझमे बाकी है,
शायद! शायद! इक किस्सा तुम्हारा मुझमें बाकी है।
मुझे अब भी तुमसे मुहब्बत है,
मुझे अब भी तुम्हारी आदत है,
अब दुनिया से कोई गिला नही मुझे,
तुम्हें भी तो मुझसे शिकायत है।
काश! काश! कोई काश हमारे बीच न आता,
काश कोई काश मुझे रात भर ना सताता!
शायद तब हम हम होते,
शायद तब कुछ गम कम होते।

kuch gam km hote hindi poem
  • Share This:

Related Posts