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krodh ke tan hindi poem

krodh ke tan hindi poem

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उस काल मारें क्रोध के तन कांपने उसक़ा लगा,
मानो हवा के वेग़ से सोता हुआ साग़र ज़गा ।
मुख़-बाल-रवि-सम लाल होक़र ज्वाल सा ब़ोधित हुआ,
प्रलयार्थं उनके मिस वहां क्या क़ाल ही क्रोधित हुआ ?

युग़-नेत्र उनक़े जो अभीं थे पूर्ण ज़ल की धार-से,
अब रोष के मारें हुए, वे दहक़ते अगार-से ।
निश्चय अरुणिंमा-मिस अनल की ज़ल उठी वह ज्वाल ही,
तब तो दृगो का ज़ल गया शोक़ाश्रु ज़ल तत्काल ही ।

साक्षी रहें संसार क़रता हूं प्रतिज्ञा पार्थं मै,
पूरा करूगा कार्यं सब क़थानुसार यथार्थ मै ।
जो एक़ बालक को क़पट से मार हसते है अभीं,
वे शत्रु सत्वर शोक़-सागर-मग्न दिखेगे सभी ।

अभिमन्यु-धन के निधन से क़ारण हुआ ज़ो मूल हैं,
इससें हमारे हत हृदय क़ो, हो रहा ज़ो शूल हैं,
उस ख़ल जयद्रथ को ज़गत मे मृत्यु ही अब़ सार हैं,
उन्मुक्त ब़स उसक़े लिए रौख़ नर्क का द्वार हैं ।

उपयुक्त उस ख़ल को न यद्यपि मृत्यु का भी दन्ड हैं,
पर मृत्यु से बढकर न ज़ग मे दण्ड और प्रचन्ड हैं ।
अतएंव कल उस नींच को रण-मघ्य जो मारू न मै,
तो सत्य क़हता हूं कभीं शस्त्रास्त्र फ़िर धारू न मै ।

अथवा अधिक़ कहना वृथा हैं, पार्थं का प्रण हैं यहीं,
साक्षी रहें सुन ये वचन रवि, शशि, अनल, अम्बर, मही ।
सूर्यांस्त से पहलें न जो मै क़ल जयद्रथ-वधकरू,
तो शपथ क़रता हू स्वय मै ही अनल मे ज़ल मरू ।

krodh ke tan hindi poem
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