कौन कहता हैं की,
नारी कमज़ोर होती है।
आज भी उसके हाथ में,
अपने सारे घर को चलाने की डोर होती है।
वो तो दफ्तर भी जाती हैं,
और अपने घर परिवार को भी संभालती हैं।
एक बार नारी की ज़िंदगी जीके तो देखों,
अपने मर्द होने के घमंड यु उतर जायेंगा,
अब हौसला बन तू उस नारी का,
जिसने ज़ुल्म सहके भी तेरा साथ दिया।
तेरी ज़िम्मेदारियों का बोझ भी,
ख़ुशी से तेरे संग बाट लिया।
चाहती तो वो भी कह देती, मुझसे नहीं होता।
उसके ऐसे कहने पर,
फिर तू ही अपने बोझ के तले रोता।
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