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koii lota de mere bachpan ko hindi poem

koii lota de mere bachpan ko hindi poem

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कोई लौटा दे मेरे बचपन को
जब बिन बात के मैं रोया करता

माँ मुझे झट से उठा लेती


अश्रु एक न बहता आँख से , पर घर सर पर उठा लेता

दूध न पीने के हज़ार बहाने बनाता
पर माँ एक-हजार -एक तरीकों से पिलाती !

 

दिन में खूब सोता और रात में अठखेलियाँ करता
माँ को निंद्रा से वंचित करता

फिर भी वो इस बात से खुश होती की मैं आज दिन में अच्छा सोया !!


कोई लौटा दे मेरे बचपन को

पहला दिन स्कूल में जाने से मना करता !
माँ बाहर ही खड़े रहकर देखती !!

 

आँखों में आंसू लिए जब वापिस आता
की क्यों बनाया स्कूल किसी ने

क्यों मुझसे से मेरी आज़ादी छीनी
बहुत गुस्सा होता ज़मीन पर पाँव रगड़ता

माँ आँचल में भर लेती और कहती
“ठीक है लल्ला कल से मत जाना “!!

 

मैं इसी बात से खुश हो जाता
नंगे पाँव ही बाहर भागता,

दोस्तों के साथ हुड़दंग करता !!


पसीने से तर , कपड़ो में मल लेकर घर लौटता

भूख़ लगी भूख लगी कहकर घर सर पर उठा लेता
माँ खाना परोसे पहले से तैयार रहती

और कहती “कितना कमज़ोर हो गया है रे !!


कोई लौटा दे मेरे बचपन को !!

koii lota de mere bachpan ko hindi poem
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