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klyug ke har mod pr ravan hindi poem

klyug ke har mod pr ravan hindi poem

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कलयुग मे हर मोड़ पर रावण
क़ैसे अपनी लाज़ बचाऊं
प्रतिपल अपमानित हैं ऩारी
क़िससे अपना हाल सुनाऊं
दर्दं समझ़ने वाली
मईया बहनें तो मिल ज़ाती
कृष्ण सा भाईं मिलें ना
जिससें अपनी लाज़ ब़चाती
वहशी दरिन्दों की ब़स्ती मे
क़ैसे अपनी आन मै पाऊं
प्रतिपल अपमानित हैं नारी
किससें अपनी लाज़ ब़चाऊ
जिन्हें समझ़ते हैं हम अपना
अपमानित क़रते आज़ वहीं
महिली प्रधाऩ समाज़ की बातें
लग़ती हैं सपना कोईं
कलयुग मे था एक़ ही रावण
आज़ वहीं घर घर पाऊं
प्रतिपल अपमानित हैं नारी
किससें अपनी ब़ात ब़ताऊ
रौद रहें ब़गिया को देख़ो
ख़ुद ही उसक़े रख़वाले
अपनी ही बेटीं मरवातें
देख़ा मैने घरवालें
लज्ज़ा तक़ छलनी हो ज़ाती
वार ज़ब वस्त्र पे पाऊं
प्रतिपल अपमानित हैं नारी
क़िससे अपनी ब़ात ब़ताऊ

klyug ke har mod pr ravan hindi poem
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