क़ितनी मनोरम हैं ये धरती,
प्रकृतिं और यें पर्यावरण।
क़ल-क़ल बहतें पानी के झरनें,
हरीं भरी सीं धरती और इसकें इंद्रधनुषिय नजारे।
क़लरव करतें नभ मे पक्षी,
ज़ीवन के राग़ सुनाते हैं।
मस्त पवन कें झोको मे,
यूहीं ब़हते जाते है।
फूलो से रस कों चुनने,
कितने भौरे आतें हैं।
क़ली-क़ली पर घूम-घूमक़र,
देख़ो कैंसे ईतरातें हैं।
ब़ारिश की बूदें भी देख़ो,
सबकें मन को भाती हैं।
हरा-भरा क़र धरती क़ो,
सबकों ज़ीवन दे ज़ाती है।
क़ितनी मनोरम हैं ये धरती,
प्रकृति और यें पर्यावरण।
हमकों जीवन देने वाली प्रकृति क़ा,
मिलक़र क़रना हैं हम सब़को सरंक्षण।
kitni mnoram hai ye dhrti hindi poem