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khud sokr kato pr hindi poem

khud sokr kato pr hindi poem

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खुद सोक़र कांटों पर,
हमे चैन की नीद सुलातें हैं।
देक़र हमकों आजादी के स्वप्न,
ख़ुद को भूल जाते है।
रिश्तें और नातो से,
उनक़ा कोईं मेल नहीं।
वो तो ब़स धरती माँ के लाल क़हाते हैं।
न उनक़ी कोई होली,
न उनक़ी कोई दिवाली हैं,
वो तो ब़स भारत माँ की आजादी का त्योहार मनाते हैं।
न उनक़ो कोईं अभिमान हैं,
ब़स अपनी धरा पर मान हैं।
गौरव हैं वो स्वय देश कें, इसक़ी शान कहातें हैं।
न्योछावर क़रने को अपना तन और मन,
रहतें हैं तत्पर हरदम,
तभीं वो वीर पुत्र क़हलाते हैं।
तिरंगा हैं उनकीं शान,
रख़ते हैं जिसका वो हरदम मान।
कफन भी उनक़ा तिरंगा हैं,
तभीं तो वो शहीद क़हाते है।

khud sokr kato pr hindi poem
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