मुहब्बत जिसने की मुझसे न संग उसने निभाया है,
अब तलक काल जीवन का ये मैंने तन्हा बिताया है।
सभी बस छल गए मुझको लुटा बैठा हूँ मैं अब तक,
खेल चालाकी का ना माँ बाप ने मुझको सिखाया है।
यूँ तो गहरा समुन्दर है फिर भी ना प्यास मिट पाई,
किसी ने जाम नज़रों का जो ना मुझको पिलाया है।
ज़रा नज़रें घुमा के देखो फ़कत मेला है लोगों का,
किसी हमदम से ना पर वक्त ने मुझको मिलाया है।
ठोकरें लगती रहती हैं सम्भलता रहता हूँ फिर भी,
मगर इस राहे मंजिल ने मुझको अक्सर गिराया है।
मैंने सेहरा की चाहत में गुलों को कुछ नहीं समझा,
हार कांटों का उनकी हाय ने मुझको दिलाया है।
वो पर्वत झुक नहीं सकता यकीं सबको यही था पर,
जलजले ने देख मधुकर उसको जड़ से हिलाया है।
kal jivan ka hindi poem