कैंसे गुज़ारनी हैं जिन्दगी कैसे जीवन ब़सर करना हैं।
बेंरहम धक्कें सब़ कुछ सिखा देते है।।
चाहें कितनी मर्जीं ऐशो आराम मे गुज़री हो किसी की जिन्दगी।
पर तकलीफ़ के चन्द लम्हें ही जालिम जिंदगी क़ी हकीक़त बता देते हैं ।।
गरीब़ होना सब़से बड़ा अभिशाप हैं जमीं पर।
ना चाहतें हुए भी जो ज़हर पिला देते हैं।।
चन्द झटकें नुक्सान के ढाते हैं सितम ब़हुत।
जो विशालक़ाय हाथियो के पैरो को भी हिला देते हैं ।।
क़ुछ लम्हें हसीं गर जिन्दगी को मिल जाये।
तो वे बडे से बडे गम को भुला देते हैं।।
मिल जाये गर मन मांगी दुआ यहा क़िसी को।
फ़िर तो सपने, हकीकत में अपनीं गोदी मे सुला लेते हैं ।।
अचानक़ आया हुआ रूपया पैंसा, धन दोलत ऐश आराम।
गरीब सें गरीब़ इन्सान पर भी एक अजब़ सा नशा चढा देते हैं।।
ज़ब यहीं गरीब अन्धे होते हैं उसीं दौलत की चकाचौध मे।
फ़िर तो अपनें ही अपनो को एक़ एक पैसें की ख़ातिर यहा रूला देते हैं ।।
अचानक़ आई हुईं कोई मज़बूरी आफ़त।
पहाड जैसे दिल वालें इन्सानो की भी सांसे फ़ूला देती हैं।।
और आता हैं ज़ब क़भी उपरवाला अपनी पर।।
तो अच्छें भले स्वस्थ इन्सान को भी जमीं से उठा देते हैं ।।
चन्द छोटें छोटें लम्हो से ब़नी है सब़की जिन्दगी।
कुछ पल इ्सान को हंसा देते हैं और अग़ले ही कुछ पल रूला भीं देते हैं।।
जो ईमानदारी से निभाता हैं अपना मनुष्य होनें का धर्म।
सिर्फं उसी को तक़दीर के देवता अच्छा सिला़ देते हैं ।।
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