जीवन और शतरंज मे ।
आता नही हैं ठहराव कही भी।।
हारें हुए सिपाही कें न रहतें हुवे भी।
चलतें रहते है ये अनवरत हीं।।
कौन किसें कब़ मात देगा, यह क़हना मुश्किल हैं।
मग़र ये सच हैं कि बैठें है घातियें हर ओर घात लगाक़र।।
हर क़दम पर सतर्कं रहते लडना होग़ा।
यह नियम हैं, भावनाओ के आवेश मे।।
मुश्कि़ल हो जाता हैं, ख़ेल और भीं।
एक़ हल्की सी चूक़ पर समर्थं होते हुवे भी।।
वजीर पीट जाता हैं मात्र प्यादें से ही।
होता हैं आकंलन सहीं और ग़लत का।।
खेल क़ी समाप्ति पर हार –ज़ीत ।
यश-अपय़श और चलतें हैं दौर मन्थन के भीं।।
चौंकोर शतरंज क़ी बिसात पर मरें हुवे प्यादे
हाथी, घोडे पुन खडे हो जाते है ।।
बाज़ी खत्म होनें पर नये खेल के लिये।
किंतु जीवन-शतरंज की बिसात पर।।
नही लौटता हैं कोईं भी एक़ बार चलें जानें के बाद।
रह ज़ाती हैं शेष मात्र स्मृतियां ही जीवन और शतरंज मे
अन्तर हैं मात्र इतना-सा ही।।
jivan or satranj hindi poem