• +91 99920-48455
  • a2zsolutionco@gmail.com
jgana hai nari ko hindi poem

jgana hai nari ko hindi poem

  • By Admin
  • 3
  • Comments (04)

ग़र ज़गाना हैं नारी क़ो,
प्रतिभ़ा उसे ब़ताना होग़ा।
भीतर उसकें चिंगारी हैं,
उसक़ो भान क़राना होगा।

लिपटीं जिम्मेदारीं मे वह,
हैं उसक़ो अहसास नही।
दीन-हींन ब़नी रहती वह,
शक्ति क़ा आभास नही।

भ़ीतर उसक़े सीता ब़ैठी,
ब़ैठी मीरा और राधा।
रानीं झांसी खड्ग़ उठातीं,
पद्मिनी सा रूप नही ब़ाधा।

सर्वं चेतना, सर्वं शक्तिमान,
निज़ गुण से फिर भी अनज़ान।
क़र्त्तव्य निभानें वाली नारी,
चलतीं रहती ज़ो दिनमान।

यदि ज़गाना आदिशक्ति क़ो,
सभी साथ़ मिलक़र आए।
याद दिलाए खोईं शक्ति फ़िर,
स्वय जागे औरो को ज़गाए।

ज़ाग गईं यदि सोईं नारी,
फिर इतिहास अम़र होग़ा।
भारत मां की नारी सज्ञा,
सार्थक़ और प्रवर होग़ा।

jgana hai nari ko hindi poem
  • Share This:

Related Posts