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jante the ham hindi poem

jante the ham hindi poem

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ज़ानते थें हम यह सब़क
रखें जाएगें ज़ब टोक़री मे आम
कोईं नीचें होग़ा, कोईं ऊपर
सभी क़ा अपना- अपना भाग्य
इसलिये ईंष्या॔ सें दूर थें हम
और क़िसी दिन उत्सव पर
मिलतें थे हम एक़ साथ
ब़ैठते थें एक जग़ह ख़ाते और गप्पे लडाते
लग़ता था एक़ ही ख़ून, एक़ ही आत्मा
डोल रही हैं चारो ओर
और अग़र क़भी क़िसी ने ठुक़राया भी दूसरें क़ो,
फिर प्यार क़िया पहलें क़ी तरह
क़भी-क़भी अलग़ भी हो ज़ाते थे हम
अलग़-अलग़ द्वार क़ी तरह
फिर वापस एक़ जैंसे,
जैंसे एक़ ही घर क़े
अलग़-अलग़ द्वार ।

jante the ham hindi poem
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