अधूरी पड़ी है ज़िंदगी ना चैन आता है,
कोई कहीं ख्वाबों में मुझको बुलाता है।
साथ जन्मों का तो हरदम टीस देता है,
तुम भुलाओ ये मगर फिर भी सताता है।
ज़िन्दगानी में तो अक्सर लोग मिलते हैं,
हर कोई दिल में मगर थोड़े ही समाता है।
कांटों के संग में कभी रहना भी पड़ता है,
चाह के कोई घर में इन्हें थोड़े ही उगाता है।
जालिम हुई है ज़िंदगी अब क्या करे कोई,
मधुकर यहाँ हर पल कोई इंसा ठगाता है।
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