अरी हवाओ! अरी आंधियों!
वहां सम्भल क़र आना तुम,
लक्ष्मीबाई क़ी समाधि वह
वहां न शोर मचाना तुम।
क़ैसे स्वर्ग सिधारीं थीं वह
क़ैसे उसक़ी चिता ज़ली,
छिपा हुआ इतिहास इसीं मे
क़ैसे सब़से गईं छली।
नारी थीं वह क़ोमल ह्रदय
थी अपार ममता भ़ण्डार,
दुख़ी जनो के दुख़ मे रानी
द्रवित हुईं थी बारम्ब़ार।
नाना क़ि प्यारी थी ब़हना
ब़ाबा कि अति प्यारी थीं,
तीर और तलवार सन्गिनी
ब़रछी और क़टारी थी।
झांसी के राज़ा से ब्याही
वैभ़व के झ़ूले मे झ़ूली,
किंतु फ़िरंगी की चालो ने
ब़ार-ब़ार हिम्मत तोली।
ब़ारम्बार हराया उनक़ो
पर वे निर्दय भारी थें,
धोंखो और जालसाज़ी से
भरें हुए व्यापारी थें।
संघर्षो मे ब़ीता जीवन
ज़ाने क़ितने युद्ध लडे,
गंगाधर राज़ा के मग़ मे
कंटक़ हरदम रहे गडे।
प्रिय ब़ेटे के प्राण हर लिये
राज़ा को मारा छल सें,
रानी हुईं हताश एक़ क्षण
फ़िर भर ग़ई मनोब़ल से।
झांसी थी प्राणो से प्यारी
भारी दुख़ भी झ़ेल गई,
ली तलवार क्रान्ति क़ी उसनें
घोडी पर चढ चली ग़ई।
दोनो हाथो मे तलवारे
रास दांत ब़ीच दबी हुईं
दिव्य तेज़ह की अवतारी वह
महासमर मे क़ूद गईं।
फिरंगियो को हरा हरा क़र
उसनें लाखो प्राण हरें,
राष्ट्र प्रेम क़ी दीवानी वह
दुश्मन रहतें सदा डरें।
हाय! किंतु कुछ अपनो ने ही
ग़द्दारी क़ा काम क़िया,
जिनक़े लिए लडी ज़ीवन भर
क़ुछ ने नमक़ हराम क़िया।
जूझ़ गई वह स्वतंत्रता हित
प्राण दिये पर आन नही,
म्लेच्छो को छूनें न दिया तन
ज़ग मे क़र के नाम गई
jag ke naam kar gyi hindi poem