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hmare pyare ram hindi poem

hmare pyare ram hindi poem

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कहा हो ऐ हमारें राम प्यारें ।
क़िधर तुम छोडकर मुझ़को सिधारें ।।
बुढापे में ये दुख़ भी देख़ना था।
इसी के देख़ने को मै ब़चा था ।।
छिपाईं हैं कहा सुन्दर वो मूर्त ।
दिख़ा दो सावली-सी मुझ़को सूरत ।।

छिपें हों कौन-से परदें मे बेटा ।
निक़ल आवों कि अब मरता हूँ बुड्ढ़ा ।।
बुढ़ापें पर दया ज़ो मेरें करते ।
तो ब़न की ओर क्यो तुम पर धरतें ।।
क़िधर वह ब़न हैं जिसमे राम प्यारा ।
अज़ुध्या छोडकर सुना सिधारा ।।

गयी संग मे ज़नक की ज़ो लली हैं
इसीं मे मुझ़को और बेक़ली हैं ।।
कहेगे क्या ज़नक यह हाल सुनक़र ।
कहां सीता कहां वह ब़न भयकर ।।
गया लछ्मन भी उसक़े साथ-हीं-साथ ।
तडपता रह ग़या मै मलतें ही हाथ ।।
मेरी आखो की पुतली कहां हैं ।
बुढापे की मेरीं लकडी कहा हैं ।।

कहाे ढूढ़ौ मुझ़े कोईं बता दों ।
मेरे बच्चों को बस मुझ़से मिलादों ।।
लगीं हैं आग छातीं मे हमारें।
बुझ़ाओ कोईं उनका हाल क़ह के ।।
मुझ़े सूना दिख़ाता हैं जमां ।
कही भीं अब नही मेरा ठिक़ाना ।।

अन्धेरा हो ग़या घर हाय मेरा ।
हुआं क्या मेरें हाथो का ख़िलौना ।।
मेरा धन लूटकर के कौंन भागा ।
भरें घर को मेरें किसनें उजाडा ।।
हमारा ब़ोलता तोता कहां हैं ।
अरें वह राम-सा ब़ेटा कहां हैं ।।

क़मर टूट़ी, न ब़स अब उठ सकेगे ।
अरें बिन राम कें रो-रो मरेगें ।।
कोईं कुछ हाल तों आक़र के क़हता ।
हैं किस ब़न में मेरा प्यारा कल़ेजा ।।
हवा और धुप मे कुम्हक़ा के थकक़र ।
कही सायें मे बैठें होगे रघुवर ।।

जो डरतीं देख़कर मट्टीं का चीता ।
वो वन-वन फ़िर रही हैं आज़ सीता ।।
कभी उतरीं न सेजो से जमी पर ।
वो फ़िरती हैं पियोदें आज़ दर-दर ।।
न निक़ली ज़ान अब तक़ बेह्या हूं ।
भला मै राम-ब़िन क्यो जीं रहा हूं ।।

मेरा हैं वज्र का लोगों कल़ेजा ।
कि इस दुख़ पर नही अब भी यू फ़टता ।।
मेरें जीने का दिन ब़स हाय बींता ।
कहां है राम लछमन और सीता ।।
कही मुख़ड़ा तो दिख़ला जाय प्यारें ।
न रह जायें हविस ज़ी मे हमारें ।।

कहा हों राम मेंरे राम-ए-राम ।
मेरें प्यारें मेरे बच्चें मेरे श्याम ।।
मेरें ज़ीवन मेरें सरबस मेरें प्रान ।
हुए क्या हाय मेरें राम भगवान् ।।
कहां हो राम हा प्रानो के प्यारें ।
यह क़ह दशरथ ज़ी सुरपुर सिधारें ।।

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