हरी हरी खेतों में बरस रही है बूंदे, खुशी खुशी से आया है सावन, भर गया खुशियों से मेरा आंगन।
ऐसा लग रहा है जैसे मन की कलियां खिल गई, ऐसा आया है बसंत, लेकर फूलों की महक का जशन।
धूप से प्यासे मेरे तन को, बूंदों ने भी ऐसी अंगड़ाई, उछल कूद रहा है मेरा तन मन, लगता है मैं हूं एक दामन।
यह संसार है कितना सुंदर, लेकिन लोग नहीं हैं उतने अकलमंद, यही है एक निवेदन, मत करो प्रकृति का शोषण।
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