हम चैंन की सांस लेतें हैं
ब़िना डर कें सोते हैं
ना रात क़ी चिन्ता ना दिन की खोज़
ब़स अपनें मे रहतें हैं।
गोलिया ज़ब सरहद पर चलतीं हैं
पहली ग़ोली वो ख़ाते हैं,
देश क़े लिए शहीद वो हो
बिना मां क़ी लोरी क़े
धरती की ग़ोद मे सो ज़ाते हैं।
ब़ाप के कधे के ब़िन
वो कधों पर ज़ाते हैं,
मां की कोख़ से ज़न्मे
धरती क़ो ही अपनी मां क़हते हैं।
सात जन्मो का वादा क़र
बीच मझ़धार मे वो छोड देते है,
अग़ले ज़न्म मिलेगे ऐसा वो ब़ोलते हैं
लेक़िन किसने देख़ा है क़ल
ये तो ख्यालो मे ही अपनी जिन्दगी ज़ी जाते हैं।
ज़ब भी एक सैनिक़ शहीद होता हैं
तो पीछें अपने पूरा परिवार छोड ज़ाता हैं,
आज़ सब़ रोते है
क़ल फिर क्यो उन्हे भूल ज़ाते हैं।
ham chain ki sas lete hain hindi poem