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garmi bhagi srdi aai hindi poem

garmi bhagi srdi aai hindi poem

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गर्मी भागी सर्दी आई
घर घर में निकली रज़ाई
लस्सी रोए जार बेज़ार
शरबत रोए बारंबार

कीट कीट कीट कीट दाँत बजाते
गिट पिट गिट पिट तोते बोलतें
पंखा कूलर छुप गये भाई
एसी ने अपनी दूम दबाई

चाय बजाने लगी शहनाई
कौफी ने उत्सव मनाई
उनी स्वेटर उनी मॅफ्लर
उनी शॉल उनी कंबल

सबने मिलके गुहार लगाई
जल्दी बाहर निकालो भाई
सूट बूट में सूरज चमका
जन जन में खुशियाँ दमका।

garmi bhagi srdi aai hindi poem
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