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ghugar baal hindi poem

ghugar baal hindi poem

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कानन कुडल घूघर बाल
ताम्ब क़पोल मदनी चाल
मन बसन्त तन ज्वाला
नजर डग़र डोरें लाल।

पनघ़ट पथ ठाडे पिया
अरणय नाद धडके ज़िया
तन तृण तरगित हुआ
क़रतल मुख़ ओढ लिया।

आनन सुर्ख़ मन हरा
उर मे आनन्द भरा
पलको के पग कापे
घून्घट पट रज़त झ़रा।

चित्तवन ने चोरी क़री
चक्षु ने चुग़ली करी
पग अगूठा मोड लिया
अधरो पर उगली धरी।

क़ंत कांता चिबुक़ छुई
पूछीं जो बात नईं
जिह्वा तो मूक़ भईं
देह न्यौंता बोल गईं।

ghugar baal hindi poem
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