सीधे सादे से हैं कुछ पेंच-ओ-खम नहीं रखते
जी भर आता है तो रो देते हैं गम नहीं रखते।
खुली क़िताब हैं हम, पर्दादारी नहीं है कोई
जो कहना है कह देते हैं, भरम नहीं रखते।
दर्द जिसका हो छलकती है आंख अपनी भी
हो दुआ या कि मोहब्बत हो कम नहीं रखते।
दुश्मनी नफरत गिला या कि शिक़वा दिल में
रखने वाले छुपा के रखते हों हम नहीं रखते।
खुश तो हो लेते हैं याद करके मुरव्वतें उनकी
बेदिली को भूल जाते हैं आँख नम नहीं रखते।
gam nhi krte hindi poem