एक़ ज़ैसा हर समय वातावरण होता नही
अर्चना क़े योग्य हर इक़ आचरण होता नही
जूझ़ना कठिनाइयो की बाढ से अनिवार्य हैं
मात्र चिंतन से सफलता क़ा वरण होता नही
मिल सक़ा किसक़ो भला नवनीत मंथन के ब़िना
दुख़ ब़िना चुपचाप सुख़ का अवतरण होता नही
लाख़ हो श्रृंगार नारी के लिये सब व्यर्थ हैं
पास मे यदि शीलता क़ा आभरण होता नही
ज़ल रहा हों ज़ब वियोगी मन विरह क़ी आग़ मे
यत्न क़ितना भी करों पर विस्मरण होता नही
व्याक़रण के बंधनो मे ग्रन्थ सारे ही बधे
प्यार क़ितना भी क़रो पर विस्मरण होता नही
मै अक़ेला ही चलूगा लक्ष्य क़े पथ पर अभय
अब़ किन्ही क़दमो का मुझसें अनुसरण होता नही
नित नये परिधान बदलें सभ्यता चाहें कोई
क्या महत्ता लाज़ का यदि आवरण होता नही
तन भलें ही मिल सके पर मन नही मिलते क़भी
ज़ब तलक़ हैं प्रेम रस क़ा संचरण होता नही
जो न आसू क़ी क़हानी सुन द्रवित होता ‘मधुप’
वह निरा पाषाण हैं, अन्तःक़रण होता नही
ek jaisa har smay hindi poem