एक दिन मिला मुझको एक कोआ
बोला जीवन जीना बन गया ह्वाआ
जंगल अब नहीं रह गए बाकी
सब तरफ है मिटटी खाकी
सीमेंट के देवदार खड़े है
ईटो के चिनार खड़े है
मदिरा बनकर बहता पानी
पर्यावरण की खत्म कहानी
मनुष्य ने यह कार्य किया है
अपना खुद से नाश किया है
बनकर रावण मनुष्य ने हर ली धरा की सुन्दरता
जिसे लोटा लेने को कोई राम नहीं मिलता
ऊँची चिमनी रोकती धमनी
साँस के साथ निगलता धुँआ
जिन्दगी बन गयी मोत का कुआँ
खो गए जंगल गुम हो गए शेर
चारो तरफ कूडो के ढेर
जंगल को शहर बनाकर
नदी पर यु बांध बनाकर
बगियाँ को श्मसान बनाया
जीवन तुझे जीना ना आया
मनुष्य तेरे ऊपर उधार बड़ा है
पर्यावरण का अपार बड़ा है
जीवन भर तू उतार ना पाए
दिनों दिन बढ़ता जाए
प्रति माह कुछ पेड़ लगा दो
अपना कर्ज कुछ यू चूका दो
भावी पीढ़ी को बतला दो
हमने अपना फर्ज निभाया
जो कुछ उलझा था सुलझाया
आगे अब से खड़ा तुम्हारे
चाहे त्याग ना चाहे या खाना
वातावरण की स्वच्छता बढ़ाना
ek din mila mujhko hindi poem