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duniya ka dstur hai hindi poem

duniya ka dstur hai hindi poem

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दुनिया का भी दस्तूर है जुदा, तू ही बता ये क्या है खुदा?
लक्ष्मी-सरस्वती, हैं चाह सभी की, क्यों दुआ कहीं ना इक बेटी की ?
सब चाहे सुन्दर जीवन संगिनी, फिर क्यों बेटी से मुह फेरे ,
लक्ष्मी रूपी बिटिया को छोड़, धन-धान्य को क्यों दुनिया हेरे |
क्या बेटे ही हैं जो केवल, दुनिया में परचम लहरा पाते ,
ना होती बेटी जो इस जग में, तो लल्ला फिर तुम कहाँ से आते?
वीरता की कथा में क्यों अक्सर, बेटों की कहानी कही जाती ,
शहीदे आज़म जितनी ही वीर, क्यों झाँसी की बेटी भुलाई जाती |
बेटे की चाहत में अँधा होकर,क्यों छीने उसके जीवन की आस ,
बेटी जीवन का समापन कर, क्यों भरे बेटे के जीवन में प्रकाश |
इतिहास गवाह उस औरंज़ेब का, शाहजहाँ नज़रबंद करवाया ,
क्या भूल गया उस कल्पना को, जिसने चंदा पर परचम लहराया |
पुरुष प्रधान के इस जग में,क्यों बेटे की चाह में तू जीता ,
मत भूल ! बेटी के लिए जनने वाली से पहले, पहला प्यार होता है पिता |
सुन ले तू ऐ बेटे के लोभी, बेटी पालन तेरे बस की बात ,
खुदा भी कैसे बख़्शे तुझे बेटी, छोटी है बहोत तेरी औकात |
दुनिया का भी दस्तूर है जुदा, तू ही बता ये क्या है खुदा?
लक्ष्मी-सरस्वती, हैं चाह सभी की, क्यों दुआ कहीं ना इक बेटी की ?

duniya ka dstur hai hindi poem
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