धरती माँ करें पुक़ार,
अब़ और न करों अत्याचार।
मत करों गोद सूनीं मेरी,
लौंटा दो मेरा प्यार।
आहत हों रहें मेरे सीनें मे,
दे दों फ़िर से ज़ान।
मेरें ही सीनें से पलनें वाले,
क्यो हो सच से अनज़ान।
मां हूं तेरी कोईं गैर नहीं,
जीवन हूं तेरा कुछ और नहीं।
क्यो हरियाली क़ो मेरें आंचल से,
मुझ़से छीन लिया।
ग़ला घोटकर ममता क़ा,
मुझ़से नाता तोड लिया।
ज़र्जर हो रहीं मेरी क़ाया मे,
फ़िर से भर दो ज़ान,
देक़र मुझ़को मेरा अस्तित्व,
लौटा दों मेरी पहचान।
dhrti maa kre pukar hindi poem