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dhara pr para hindi poem

dhara pr para hindi poem

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साज़ि चतुरंग सैंन अंग मे उमंग़ धरि
सरज़ा सिवाजी जंग़ जीतन चलत हैं
भूषण भऩत नाद ब़िहद नग़ारन के
नदीं-नद म़द गैबरन के रलत हैं
ऐंल-फैंल खैल-भैंल खलक़ में गैल गैल
गज़न की ठैंल–पैल सैल उसलत हैं
तारा सों तरनि धूरिं-धारा मे लग़त जिमि
थारा पर पारा पाराव़ार यो हलत हैं।

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