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brsat ki bhare hindi poem

brsat ki bhare hindi poem

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हैं इस हवा में क्या-क्या बरसात की बहारें।
सब्जों की लहलहाहट ,बाग़ात की बहारें।
बूँदों की झमझमाहट, क़तरात की बहारें।
हर बात के तमाशे, हर घात की बहारे।
क्या – क्या मची हैं यारो बरसात की बहारें।

बादल लगा टकोरें , नौबत की गत लगावें।
झींगर झंगार अपनी , सुरनाइयाँ बजावें।
कर शोर मोर बगले , झड़ियों का मुँह बुलावें।
पी -पी करें पपीहे , मेंढक मल्हारें गावें।
क्या – क्या मची हैं यारो बरसात की बहारें।

क्या – क्या रखे हए है या रब सामान तेरी कुदरत।
बदले है रंग क्या- क्या हर आन तेरी कुदरत।
सब मस्त हो रहे हैं , पहचान तेरी कुदरत।
तीतर पुकारते है , ‘सुबहान तेरी कुदरत’।
क्या – क्या मची हैं यारो बरसात की बहारें।

जो मस्त हों उधर के , कर शोर नाचते हैं।
प्यारे का नाम लेकर ,क्या जोर नाचते हैं।
बादल हवा से गिर – गिर, घनघोर नाचते हैं।
मेंढक उछल रहे हैं ,और मोर नाचते हैं।
क्या – क्या मची हैं यारो बरसात की बहारें।

कितनों तो कीचड़ों की, दलदल में फँस रहे हैं।
कपड़े तमाम गंदे , दलदल में बस रहे हैं।
इतने उठे हैं मर – मर, कितने उकस रहे हैं।
वह दुख में फँस रहे हैं, और लोग हँस रहे हैं।
क्या – क्या मची हैं यारो बरसात की बहारें।

यह रुत वह है जिसमें , खुर्दो कबीर खुश हैं।
अदना गरीब मुफ्लिस, शाहो वजीर खुश हैं।
माशूक शादो खुर्रम , आशिक असीर खुश हैं।
जितने हैं अब जहाँ में, सब ऐ ‘नज़ीर’ खुश हैं।
क्या – क्या मची हैं यारो बरसात की बहारें।

brsat ki bhare hindi poem
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