फूल को अपनी खुशबू का पता थोड़े ही होता है,
खुशी को बाँटता है वो फिर भी तन्हा ही रोता है।
किसी के होंठो पे मुस्कान जो भी ले के आता है,
उसी से जान लो वो कितना अपना चैन खोता है।
वो जो इतनी अकड़ अपनी ज़माने को दिखाता है,
न जाने कितने लोगों के चरण हँस हँस के धोता है।
ज़िंदगी दूध की माफिक ही अपना रूप धरती है,
वही माखन भी पाता है जो कि इसको बिलोता है।
अपने ग़म गलत करने को उसने साथ मांगा था,
मगर अब बोझ ये सारे फ़कत मधुकर ही ढोता है।
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