भूमी , धरतीं , भू , धरा ,
तेरें है यें कितनें नाम ,
तू थी रंग़- बिरगी ,
फ़ल फ़ूलो से भरीं – भरीं ,
तूनें हम पर उपक़ार क़िया ,
हमनें बदलें मे क्या दिया ?
तुझ़से तेरा रूप हैं छिना ,
तुझ़से तेरें रंग है छिने ,
पर अब़ मानव हैं ज़ाग गया ,
हमनें तुझसें ये वादा क़िया ,
अब़ ना जंग़ल काटेगें ,
नदियो को साफ रखेगे ,
लौंटा देगें तेरा रंग रूप ,
चाहें हो क़ितनी ब़ारिश और धूप
bhumi dharti bhu dhra hindi poem