वक्त की ज़द में कुछ भी हो तुम फिर भी रहना पड़ता है,
तेरे बिन इस तन्हाई का ग़म मुझको भी सहना पड़ता है।
कितना भी कोई संयम रख ले दर्द तो दिल में होता है,
पीर बढे जब हद से ज्यादा उसको तो कहना पड़ता है।
कितनी सूरत मिलती हैं इस नदिया को निज जीवन में,
इसके जल को लेकिन फिर भी हरदम बहना पड़ता है।
कितना भी कोई गर्व करें सब कुछ नश्वर है जीवन में,
इंसानी हस्ती को इस जग में एक दिन ढहना पड़ता है।
भाग्य ना कोई बांच सका है मधुकर इंसा का धरती पर,
जो भी किस्मत से मिलता है बस वो ही गहना पड़ता है।
bhagya na koii bcha ska hindi poem