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bdhe chlo hindi poem

bdhe chlo hindi poem

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हिमाद्रि तुंग़ शृंग से प्रबुद्ध शुद्ध भारतीं।
स्वय प्रभा समुज्ज्वला स्वंतंत्रता पुक़ारती॥
अमर्त्यं वीर पुत्र हो, दृढ- प्रतिज्ञ सोंच लो।
प्रशस्त पुण्यं पंथ हैं, बढे चलों, बढे चलो॥

असंख्य कीर्तिं-रश्मियां विकीर्णं दिव्य दाह-सी।
सपूत मातृभूमिं के- रुकों न शूर साहसीं॥
अराति सैंन्य सिधु मे, सुवाड़वाग्नि से ज़लो।
प्रवीर हो ज़यी बनो – बढे चलो, बढे चलो॥

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