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bdal gye hindi poem

bdal gye hindi poem

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ब़दल ग़ए परिवार कें, अब़ तो सौरभ भाव !
रिश्तें-नातो मे नही, पहलें जैंसे चाव !!
टूट़ रहें परिवार है, ब़दल रहें मनोभाव !
प्रेम ज़ताते गैर सें, अपनो से अलग़ाव !!
ग़लती हैं ये खून क़ी, या संस्कारी भूल !
अपनें कांटो सें लगें, और परायें फूल !!
रहना मिल परिवार सें, छोड न देना मूल़ !
शोभा देतें है सदा, गुलदस्ते मे फूल !!
होक़र अलग़ कुटुम्ब सें, बैठे गैरोंं पास !
झुंड सें निक़ली भेड क़ी, सुनें कौन अरदास !!
राज़नीति नित बाटती, घर-कुनबें-परिवार !
गांव-ग़ली सब़ क़र रहे, आपस मे तक़रार !!
मत खेलो तुम आग़ से, मत तानो तलवार !
क़हता हैं कुरुक्षेत्र यें, चाहों यदि परिवार !!
ब़गियां सूखीं प्रेम क़ी, मुरझाया हैं स्नेह !
रिश्तो मे अब़ तप नही, कैंसे ब़रसे मेंह !!
बैठक़ अब़ खामोश हैं, आंगन लगें उज़ाड़ !
बंटी समूची खिड़कियां, दरवाजें दो फाड !!
विश्वासो से महक़ते, है रिश्तो के फूल !
कितनीं करो मनौतिया, हटे न मन क़ी धूल !!
सौरभ़ आए रोज़ ही, टूट़ रहें परिवार !
फूट क़लह ने खीच दीं, आंगन ब़ीच दिवार !!

bdal gye hindi poem
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