कुदरत ने जो दिया मुझे ,
है अनमोल खजाना !
कितना सुगम सलोना वो
ये मुश्किल कह पाना !!
दमक रहा ऐसे मानो ,
सोने सा बचपना फिक्र !
फिक्र नही कल की
न किसी से सिकवा गिला !!
मित्रो की जब टोली निकले ,
क्या खाये ,बिन खाये !
बडे चाव से ऐसे चलते
मानो जन्ग जीत कर आये !!
कोमल हाथो से बलखाकर ,
जब करते आतिशवजी !
घुन्घरू बान्धे हुए पैर पर
तब चलती खुशियो की आन्धी !!
उन्हे देख मा की ममता का ,
उमड रहा सैलाब !
मन मन्दिर महका रहा
बगिया का खिला गुलाब !!
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