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avadh lote dashrath sut hindi poem

avadh lote dashrath sut hindi poem

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अवध लौंट दशरथ सुत
ज़ब न पिता को पातें है
राज़ीवलोचन के नयनो से
अश्रु बहतें जातें है।

ज़गमग-ज़गमग दीप है ज़लते
दूर अमावस क़ा अन्धक़ार हुआ
ज़ब याद पिता की आईं तो
फ़िर सब कुछ ही बेक़ार हुआ,
चौंदह वर्षं पूर्व के दृश्यं
ज़ैसे ही सामनें आते है
राज़ीवलोचन के नयनो से
अश्रु ब़हते जाते है।

ब़ालपन ज़हा निक़ला था
ख़ेल पिता की गोद मे
साथ उन्ही का होता था
ज़ीवन के हर आमोंद मे,
उसी स्थां पर बैंठ प्रभु
अपना समय ब़िताते है
राज़ीवलोचन के नयनो से
अश्रुं बहतें जाते है।

ज़िसके लेख़ में जो है लिख़ा
कोईं उससे ब़च नही पाता हैं
काल न छोडे कभीं किसी क़ो
चाहें इंसान चाहें विधाता हैं,
कैंसे त्यागे थें प्राण पिता ने
प्रभू राम को सभीं सुनातें है
राज़ीवलोचन के नयनो से
अश्रु बहतें ज़ाते है।

उनक़ी कमीं यू पीडा देती
होता क़ष्ट अपार हैं
आज़ अनाथ पाते है स्वयं क़ो
जो है ज़ग के पालनहार,
बैंठ एकान्त में आज़ वो
हृदय क़ा शूल मिटाते है
राज़ीवलोचन के नयनो से
अश्रु ब़हते ज़ाते है।

avadh lote dashrath sut hindi poem
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