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anjan hindi poem

anjan hindi poem

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मैंने सजाया था तुम्हें अपने मुकुट में मान सा,

लेकिन तुम्हें ना हो सका उसका जरा भी भान सा।

अब क्या करे कोई तुम्हारी सोच तो बदली नहीं,
तुमको भी साथी चाहिए एक जादूगर धनवान सा।

सोचा बहुत रोका बहुत पर फिर भी देखो ना थमा,
आज भी उठता है दिल में एक बड़ा तूफान सा।

देखते हो क्या मकां ये इसमें कोई घर नहीं,
एक खंडहर है फकत टूटा हुआ वीरान सा।

दौलतें जग की मिलें पर ना मिले गर साथिया,
मधुकर बना रहता है फिर इंसान इक अनजान सा।

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