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amaa ke aangan me hindi poem

amaa ke aangan me hindi poem

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अम्मा के आँगन में
टिप-टिप गिरती बूँदें
गाती रही मेघ मल्हार
मैं बैठी गिनती रही

गिरते जामुन बार-बार
बादलों से लेकर आई
भर कर झोली में
फूटती किरणें और बौछारें
आमों की बगिया को
फिर सींचा बौछारों से
किरणों का बिछौना बुन
सजाया भीगे पत्तों से
मोती बनने की आस में

पी थी मैंने सारी
सावन की बूँदें
सीप समझ मुझमें शायद
स्वाति नक्षत्र की बूँद
समा जाए

सावन के इस दुलार में
बचपन के अनभिज्ञ संसार में
भीगा मेरा तन-मन
अनुभूति की बौछार में
आज भी मेरे आँगन में
ये सीले पल दबे पाँव
पाँव तलक आ जाते हैं
पानी में पडते ही
छींटें उड़ा जाते हैं

कब छूटा है माँ का अँगना
कब छूटी है बौछारें
हर मोड़ पर मिल जाती है
सावन की गीली बूँदों की तरह
मेरी आँखों में
एक तस्वीर की तरह
और हवा में बहकी
तितली की तरह

amaa ke aangan me hindi poem
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