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alag alag gliyo hindi poem

alag alag gliyo hindi poem

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अलग अलग गलियों कुचों में लोग कोन गिनता है|
साथ खड़े हों रहने वाले, देश तभी बनता है||

बड़ी बड़ी हम देश प्रेम की बात किये जाते हैं|
वक्त पड़े तो अपनों के भी काम नही आते हैं||

सरहद की रखवाली को सेना अपनी करती है|
पर अंदर सडकों पर लड़की चलने में डरती है||

युवा शक्ति का नारा सुनने में अक्सर आता है|
सही दिशा भी किसी युवा को नहीं दिखा पाता है||

खेत हमारी पूँजी है, और फसल हमारे गहने|
क्यों किसान फिर कहीं लगे हैं जान स्वयं की लेने||

थल सजा है कहीं परन्तु भूख नहीं लगती है|
किसी की बेटी भूख के मारे रात रात जगती है||

क्या सडसठ सालों में ये आजाद वतन अपना है|
क्या यही भगत सिंह और महात्मा गाँधी का सपना है||

क्या इसीलिए आज़ाद गोली खुद को मारी|
क्या इसीलिए रण में कूदी वह नन्ही सी झलकारी||

क्या इसीलिए बिस्मिल ने ‘फिर आऊंगा’ कह डाला था|
क्या ऊधम सिंह ने क्रोध को अपने इसलिए पाला था|

गर नहीं तो फिर कैसे चूके हम राष्ट्र नया गढ़ने में|
जिस आज़ादी के लिए लड़े उसकी इज्जत करने में||

जो फूल सूख कर बिखर गया वह फिर से नही खिलेगा|
जो समय हाथ से निकल गया वह वापस नहीं मिलेगा||

पर अक्लमंद को एक इशारा ही काफ़ी होता है|
सुधार ही हर गलती के लिए असली माफ़ी होता है||

देश प्रेम और राष्ट्रवाद के गान नहीं गाओ तुम|
अपने अंदर बसे भगत सिंह को जरा जगाओं तुम||

मंजिल दूर नहीं राही जब करले अटल इरादा|
अपना हाथ उठा कर ख़ुद से आज करो ये वादा||

मेरे सामने कोई कभी भी भूख से नही मरेगा|
मेरे रहते अन्याय से कोई नहीं डरेगा||

मैं पहले उसका जिसकी तत्काल मदद करनी है|
अपने आगे हर पीड़ित की हर पीड़ा हरनी है||

शपथ गृहण कर आज़ादी का उत्सव आज मनाते हैं|
देश बुलाता है आओ कुछ काम तो इसके आते हैं||

|| वन्दे मातरम् – भारत माता की जय ||

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